'कविता कोसी' द्वारा किसी कवि का एकल संग्रह पहली बार 2007 में प्रकाशित किया गया। यह संग्रह है 'थके पॉंवों का सफर' और इसके कवि हैं खेदन प्रसाद चंचल। दुख की बात है कि चंचल जी का विगत 22 दिसंबर 2010 को लंबी बीमारी के बाद कटिहार रेलवे अस्पताल में निधन हो गया। हमारी ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।
खेदन प्रसाद चंचल का जन्म 3 अक्टूबर 1935 को गोपालगंज (बिहार) जिले के जमसर गॉंव में हुआ था। उन्होंने इंटरमीडिएट तक शिक्षा पाई थी। पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, कटिहार मंडल के इंजीनियरिंग विभाग से कार्यालय अधीक्षक पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात चंचल जी कटिहार में रहते हुए 'स्वांत: सुखाय' कविता-कर्म में संलग्न थे। हिन्दी और भोजपुरी में कविताऍं लिखनेवाले चंचलजी की उपस्िथति कवि गोष्ठियों-सम्मेलनों और पत्र-पत्रिकाओं में प्राय: नजर आ जाती थी। आकाशवाणी से भी उनकी कविताओं का यदा-कदा प्रसारण हुआ करता था। 'थके पॉंवों का सफर' के अलावा उनका एक और कविता-संग्रह 1992 में 'माटी की महक' नाम से प्रकाशित हुआ था।
चंचलजी के दोनों ही संग्रहों का पाठकों के बीच पर्याप्त स्वागत हुआ और अच्छी प्रतिक्रियाऍं मिलीं। उनके दूसरे संग्रह की भूमिका में 'नई धारा' मासिक पत्रिका के संपादक डॉ. शिवनारायण ने लिखा है, ''थके पॉंवों का सफर' की कविताओं से गुजरते हुए पाठक मनुष्यता को बचाए रखने की सदिच्छा का बार-बार अनुभव करेंगे और एक बेहतर समाज के निर्माण का संकल्प भी उनके मन में तरंगित होगा। सत्तर पार के कोसी कछार के निर्मल कवि के इस दूसरे काव्य-संग्रह का रचनात्मक सफर यदि आपतकाल में संवेदना को बचाए रखने की अपील करता है, तो क्या वृहत्तर हिन्दी समाज उस पर ध्यान नहीं देना चाहेगा।''
चंचलजी के परम मित्र श्री रामखेलावन प्रजापति ने उनकी रचना-यात्रा के साक्षी स्वरूप रहते हुए उनकी काव्य साधना को निम्नांकित शब्दों में समझा और लिखा है, ''उन्होंने सामाजिक असमानता, अंधविश्वास, सामाजिक प्रताड़ना और संत्रास को अपनी कविता का विषय बनाया। समसामयिक व्यवस्था के प्रति अपना स्वर मुखरित किया। सामाजिक न्याय, समरस समाज सद्भावना, सौहार्द के लिए दलितों-पिछड़ों को आवाज दिया।.......संवेदनात्मक धरातल पर मनुष्य की असुरक्षा, घबराहट, डर, दहशत की व्यंजना है इनकी कविताओं में और बदले हुए समय एवं मूल्यों के संकेत, यथा--बाजारवाद, भूमंडलीकरण, उदारीकरण और उपभोक्ता संस्कृति से उपजे संकट के प्रति आवेगात्मक आक्रोशपूर्ण स्वर गुंजित हैं।''
चंचलजी की कविता 'कहॉं तक' का एक अंश निम्नांकित है :
आखिर क्यों
हम दुर्योधन और शकुनि को
कोसते हैं
जबकि हम उन्हें अपने घरों में
पोसते हैं।
जला देते हैं, रावण को
एक बार साल में।
पर बैठाए हुए हैं,
अपने हर खयाल में। (पृ. 51, थके पॉंवों का सफर)
कोसी अंचल (बिहार के पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, किशनगंज एवं अररिया जिले)के साहित्य, विशेषकर कविता विधा की उपलिब्धियों को संरक्षित, संवर्द्धित करने की दिशा में कार्य करने के लिए सन्नद्ध और दृढ़ संकल्पित प्रकाशन संस्थान 'कविता कोसी' गंभीरता से प्रयासरत है। एक अनुमान के अनुसार कोसी अंचल में हिन्दी, उर्दू, बांग्ला, मैथिली, भोजपुरी, अंगिका, सूर्यापुरी तथा यत्किंचित संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषा में सृजनरत रचनाकारों की संख्या 500 से भी अधिक है।
मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010
कविता कोसी : पंचम खंड
कविता कोसी का पाँचवा खंड 2009 में प्रकाशित हुआ। पूर्व की भॉंति संपादक देवेन्द्र कुमार देवेश ने इस खंड की भूमिका में कोसी अंचल की साहित्यिक विरासत का आकलन प्रस्तुत करने के क्रम को आगे बढ़ाया है। इस खंड में कोसी अंचल के पूर्वकालीन कवियों में से जगदीश कवि, हरिचरण दस, महेन्द्रनारायण चंद, महावीर तिवारी और शिवनाथ सिंह आदम की कविताऍं प्रकाशित की गई हैं। खंड में शामिल समकालीन कवियों के नाम हैं : सर्वश्री तेजनारायण तेज, सुखदेव नारायण, गणेश चंचल, भुवनेश्वर प्रसाद गुरुमैता, छेदी पंडित, महेश्वर प्रसाद सिंह तथा मधुकर गंगाधर। ये सभी कवि कोसी अंचल के वयोवृद्ध कवियों में से हैं। इन सबकी कविताओं पर पूर्व खंडों की भॉंति डॉ. कामेश्वर पंकज ने समीक्षात्मक आलेख लिखा है, जिसमें उनका निष्कर्ष है--''सातों रचनाकारों ने अपनी लेखनी पॉंचवे-छठे दशक में आरंभ की है और शताब्दी के अंत तक उनका लेखन काल फैला हुआ है। इसलिए हिन्दी काव्य में प्रवृत्तिमूलक जितने बदलाव हुए हैं, वे इनकी रचनाओं में परिलक्षित होते हैं। कवि तेज और महेश्वर प्रसाद सिंह की रचनाओं में छायावादी-रहस्यवादी भावभूमि और शिल्प देखे जा सकते हैं। कवि गुरुमैता और गणेश चंचल के गीतों में उत्तर छायावादी गीतों की रवानी और ताजगी है। कवि छेदी पंडित दलित चेतना के प्रतिनिधि हैं। कवि सुखदेव नारायण की कविताओं में छिजते जीवनमूल्य का दर्द है।''
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
कविता कोसी : चतुर्थ खंड
'कविता कोसी' का चतुर्थ खंड 2009 ई. में प्रकाशित हुआ। पूर्व की भॉंति इसमें कोसी अंचल के सात समकालीन कवियों की कविताऍं शामिल की गई हैं। संकलित कवि हैं : लीलारानी शबनम, सुबोध कुमार सुधाकर, जी. पी. शर्मा, वरुण कुमार तिवारी, भूपेन्द्रनारायण यादव 'मधेपुरी', नीरद जनवेणु और हरि दिवाकर। पुस्तक के प्रारंभ में संपादक देवेन्द्र कुमार देवेश ने कोसी अंचल के शासक साहित्यकार तथा उनके राज्याश्रित कवियों पर शोधपूर्ण भूमिका लिखी है। भूमिका के पश्चात तीन शासक कवियों--पद्मानंद सिंह, कमलानंद सिंह 'साहित्यसरोज' और कुमार गंगानंद सिंह की कविताओं के साथ-साथ चार राज्याश्रित कवियों--जयगोविन्द महाराज, हनुमान कवि, शीतल प्रसाद और भगवंत कवि की कविताऍं भी प्रकाशित की गई हैं। समकालीन कवियों की कविताओं पर अन्य खंडों की भॉंति डॉ. कामेश्वर पंकज का समालोचनात्मक लेख प्रकाशित किया गया है।
सोमवार, 23 अगस्त 2010
कविता कोसी : तृतीय खंड
कविता कोसी' का तृतीय खंड 2008 में प्रकाशित हुआ। यह खंड कोसी अंचल के युवा कवियों पर केन्द्रित है। इस खंड में संपादक श्री देवेन्द्र कुमार देवेश ने कोसी अंचल के ऐतिहासिक संदर्भों को उल्लेखित करते हुए अपने संपादकीय में साहित्यिक विरासत के अंतर्गत अंचल के सूफी कवि और भक्त कवियों का परिचय दिया है। पुस्तक में सूफी कवि शेख किफायत, भक्त कवि लक्ष्मीनाथ परमहंस के साथ-साथ अचल कवि, छत्रनाथ और जॉन क्रिश्चियन की कविताऍं भी प्रस्तुत की गई हैं।
इस खंड में जिन युवा रचनाकारों की कविताऍं शामिल हैं, वे हैं--सर्वश्री कल्लोल चक्रवर्ती, श्याम चैतन्य, संजय कुमार सिंह, रणविजय सिंह सत्यकेतु, राजर्षि अरुण, शुभेश कर्ण और ठाकुर शंकर कुमार। पिछले खंडों की भॉंति इस खंड में भी शामिल कविताओं पर डॉ. कामेश्वर पंकज द्वारा लिखित समीक्षात्मक आलेख प्रकाशित है।
इस खंड में जिन युवा रचनाकारों की कविताऍं शामिल हैं, वे हैं--सर्वश्री कल्लोल चक्रवर्ती, श्याम चैतन्य, संजय कुमार सिंह, रणविजय सिंह सत्यकेतु, राजर्षि अरुण, शुभेश कर्ण और ठाकुर शंकर कुमार। पिछले खंडों की भॉंति इस खंड में भी शामिल कविताओं पर डॉ. कामेश्वर पंकज द्वारा लिखित समीक्षात्मक आलेख प्रकाशित है।
शनिवार, 17 जुलाई 2010
कविता कोसी : द्वितीय खंड
कविता कोसी का द्वितीय खंड 2007 ई. में प्रकाशित हुआ। पिछले खंड की भॉंति ही इसमें कोसी अंचल के सात समकालीन कवियों की प्रतिनिधि कविताऍं शामिल की गई हैं, जिन पर डॉ. कामेश्वर पंकज द्वारा लिखित समीक्षात्मक आलेख भी है। इस खंड में शामिल कवियों के नाम हैं : कैलास विहारी सहाय, अमोघ नारायण झा अमोघ, रमेशचंद्र वर्मा, जोगेश्वर जख्मी, विद्यानारायण ठाकुर, हरिशंकर श्रीवास्तव 'शलभ' और भोला पंडित 'प्रणयी'। इस खंड में संपादक देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा कोसी नदी के पुराणशास्त्रीय और लोकसाहित्य संदर्भों पर संपादकीय लिखा गया है। साथ ही पॉंच कोसी गीत तथा कोसी नदी पर नंदकिशोर लाल 'नंदन' (निष्ठुर कोसी माय), रामकृष्ण झा 'किसुन' (कोसीक बाढि़), नारायण प्रसाद वर्मा (सुकुमार नदी), सुरेन्द्र स्निग्ध (कोसी का कौमार्य) और रमेश (कोसी-गाथा) द्वारा लिखित हिन्दी एवं मैथिली कविताओं को भी प्रकाशित किया गया है।
मंगलवार, 6 जुलाई 2010
कविता कोसी : प्रथम खंड
कविता कोसी का प्रथम खंड 2007 में प्रकाशित हुआ। इसके संपादकीय में श्री देवेन्द्र कुमार देवेश ने कोसी अंचल का परिसीमन करते हुए कोसी नदी के भौगोलिक, पौराणिक, ऐतिहासिक संदर्भ प्रस्तुत करते हुए सिद्ध सरहपा को कोसी अंचल का प्रथम कवि स्थापित किया। इस खंड में सरहपा सहित विनयश्री, सोनकवि, हेमकवि, कृष्णकवि, कृष्णाकवि और ऋतुराज कवि--कुल सात पूर्वकालीन कवियों की कविताऍं और उनके परिचय प्रस्तुत किए गए हैं।
इस खंड में हिन्दी के सात समकालीन कवियों की कविताऍं शामिल की गई हैं, जिन पर डॉ. कामेश्वर पंकज का समीक्षात्मक आलेख भी प्रकाशित है। कवियों के नाम हैं--श्री रिपुदमन झा 'देहाती', श्रीमती मंजु वात्स्यायन, श्री सुरेन्द्र स्निग्ध, श्री ध्रुवनारायण सिंह 'राई', श्रीमती शांति यादव, श्रीमती उत्तिमा केशरी और श्री हरिकिशोर चतुर्वेदी।
सोमवार, 5 जुलाई 2010
'कविता कोसी' की शुरुआत
कोसी अंचल का का यह दुर्भाग्य है कि कथा विधा में कुछेक नामों को छोड़ दें तो प्राय: रचनाकारों की उनकी रचनाशीलता के अनुरूप समुचित और व्यापक पहचान नहीं बन पाई है। समूचे परिदृश्य पर विचार करें तो स्पष्टत: यह बात सामने आती है कि यह स्थिति इसलिए नहीं कि हमारे रचनाकार स्तरीय अथवा मुख्यधारा के अनुरूप लेखन नहीं करते, बल्कि इसलिए है कि उनकी रचनाऍं या तो प्रकाशित नहीं हो पातीं या द्वितीयक श्रेणी की पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं। यदि कुछेक रचनाकारों के संग्रह भी आ गए हैं अथवा वे प्रथम श्रेणी की पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए हैं, तो भी नैरंतर्य तथा समुचित मूल्यांकन के अभाव में राष्ट्रीय स्तर पर वे रेखांकित नहीं हो पा रहे हैं। यह स्थिति न केवल उद्वेलित करती है, वरन बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है।
ऐसी स्थिति में कोसी अंचल की कविता के प्रातिनिधिक स्वरूप को सामने लाने के लिए ठोस तथा संदर्भ-ग्रंथ-सदृश प्रकाशनों को संभव करना जरूरी है-ऐसे ग्रंथ जो न केवल अंचल के कवियों की प्रतिनिधि रचनाओं को अपने में समाहित करते हों, बल्कि उन रचनाओं की विश्लेषणात्मक समीक्षा करनेवाले आलेखों को भी। इस दिशा में काफी सोच-विचार के बाद रचनाकारों के पारस्परिक सहयोग पर आधारित योजना के अंतर्गत 'कविता कोसी' नामक पुस्तक शृंखला प्रकाशित करने की जो योजना सामने आई, उसके अंतर्गत पुस्तक के पॉंच खंड भारतीय राष्ट्रीय संस्थान साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली में कार्यरत कोसी अंचल के युवा कवि-आलोचक श्री देवेन्द्र कुमार देवेश के संपादन में प्रकाशित किए जा चुके हैं।
पुस्तक शृंखला के उक्त पॉंचों खंडों पर डॉ. वरुण कुमार तिवारी की विस्तृत समीक्षा 'कविता कोसी : कोसी अंचल की साहित्यिक विरासत' शीर्षक से हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिका 'अलाव' (संपादक : श्री रामकुमार कृषक) के जनवरी-फरवरी, 2010 के अंक में प्रकाशित हुई है।
पुस्तकें प्राप्त करने के लिए हमें निम्नांकित पते पर ईमेल करें--
kavitakosi@yahoo.co.in
ऐसी स्थिति में कोसी अंचल की कविता के प्रातिनिधिक स्वरूप को सामने लाने के लिए ठोस तथा संदर्भ-ग्रंथ-सदृश प्रकाशनों को संभव करना जरूरी है-ऐसे ग्रंथ जो न केवल अंचल के कवियों की प्रतिनिधि रचनाओं को अपने में समाहित करते हों, बल्कि उन रचनाओं की विश्लेषणात्मक समीक्षा करनेवाले आलेखों को भी। इस दिशा में काफी सोच-विचार के बाद रचनाकारों के पारस्परिक सहयोग पर आधारित योजना के अंतर्गत 'कविता कोसी' नामक पुस्तक शृंखला प्रकाशित करने की जो योजना सामने आई, उसके अंतर्गत पुस्तक के पॉंच खंड भारतीय राष्ट्रीय संस्थान साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली में कार्यरत कोसी अंचल के युवा कवि-आलोचक श्री देवेन्द्र कुमार देवेश के संपादन में प्रकाशित किए जा चुके हैं।
पुस्तक शृंखला के उक्त पॉंचों खंडों पर डॉ. वरुण कुमार तिवारी की विस्तृत समीक्षा 'कविता कोसी : कोसी अंचल की साहित्यिक विरासत' शीर्षक से हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिका 'अलाव' (संपादक : श्री रामकुमार कृषक) के जनवरी-फरवरी, 2010 के अंक में प्रकाशित हुई है।
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